सुयोग्य, शिक्षित और कर्मठ लोगो की बड़ी फौज निकल पड़ी है। यें अक्सर सड़को पर या बाजार में मिल जातें हैं। आजकल इन्हीं के दस्तक से सुवह की नींद खुलती है और देर रात दर्शन के बाद ही सोने जाता हूं। कर्मठ इस कदर है कि अपनी जीत का गणित समझाये बिना उठते नही। पर, शायद खुद पर भरोसा नही है। लिहाजा, अगली सुवह फिर समझाने पहुंच जातें हैं। खुद को महान समाजसेवी और इमानदार बताने वाले अपने प्रतिद्वंदी के बेइमान होने के इतने सबूत पेश कर देतें हैं कि सीबीआई जैसी जांच एजेंसी भी चकरा जाये। दरअसल, सम्मान देने पर समर्थको की लम्बी सूची में मेरा नाम भी शामिल हो जाता है और अगले दरबाजे पर बाजाप्ता इसकी घोषणा की जाती है। अब इन्हें कैसे समझाउं कि मेरे साथ समय जाया करने से बेहतर होता कि आप सीधे उन्हीं के पास जाते... जो, चिराग की टिमटिमती रौशनी में शायद आपका ही इंतजार कर रहें हैं...।
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