बिहार की राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ पर

कौशलेन्द्र झा 

बिहार की राजनीति एक बार फिर से दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ पर है। मुख्यमंत्री के इस्तीफा को हल्के में नही लेना चाहिए। वल्की, इसके और भी कई संकेत हो सकतें हैं। दरअसल मंत्रीपरिषद की खींचतान व विस्तार का दबाव नीतीश कुमार पहले से झेल रहे थे। ऐसे में लोकसभा चुनाव परिणाम ने उनको अंदर तक हिला दिया है। आंख मिलाने में हिचकने वाले मंत्री भी अब मंत्रीपरिषद की बैठक में सरेआम भिड़ने लगे हैं। मुख्यमंत्री का इकवाल खतरे में पड़ गया है। इन परिस्थितियों से उबरने में मुख्यमंत्री ने इस्तीफा देकर ब्रम्हास्त्र तो चलाया किंतु, अब यही गेम नीतीश कुमार के लिए उल्टा परने लगा है। मुझे कई विधायको ने बताया कि आज शाम विधायकदल की बैठक में एक बार फिर से नीतीश कुमार को ही नेता चुन लिया जायेगा। हालांकि, यह बात दीगर है कि नीतीश दुबारा मुख्यमंत्री बनेंगे या नही? जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नेतृत्व में बदलाव के पक्षधर हो गयें है। तेजी से बदल रहे समीकरण में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से बात करना चौकाता है। सवाल यही खत्म नही होता। वल्की, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जदयू का राष्ट्रीय नेतृत्व बिहार में नए समीकरण तलाश रहा हैं। सोशल इंजीनियरिंग में माहिर नीतीश कुमार का जिद, बिहार में भाजपा के लिए जमीन तैयार करने में कारगार साबित हो चुका है। बहरहाल, नीतीश कुमार का यह मास्टर स्टाक नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य तय करने वाला है। मेरे समझ से राजनीति में जिद व द्वेश के लिए कोई स्थान नही होना चाहिए। अंत में मैं सिर्फ इतना ही कहंूगा कि जो हो रहा है, वह बिहार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

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