नेताजी शुरू हो गए


मीनापुर  कौशलेन्द्र झा 
अपनी फटफटिया से उतरते ही नेताजी शुरू हो गए। लालटेन की रौशनी में कमल पर दनादन तीर छोरने लगे। बनारस, बड़ोदरा, लखनउ जैसे चर्चित लोकसभा का समीकरण तो मानो नेताजी को जुवानी याद हो। बिहार के हर एक सीट का पुरा ब्योरा। उत्तर और दक्षिण भारत का अद्भूत ज्ञान। कहतें हैं कि 16 वीं लोकसभा का पुरा तस्वीर नेताजी के पाकेट में हैं। किसको कितना सीट मिलने वाला है, अंगूली पर गिना देंगे।
चौकिए नही, मैं दिल्ली के किसी टीबी स्टूडियों में बैठे राजनीतिक समीक्षक की बात नही कर रहा हंू। वल्की यह दृश्य है, मीनापुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से चौक का। मैं जिस नेताजी की बात कर रहा हूं, दरअसल वें चौथी फेल है। हां, दबंगयी में उनकी कोई सानी नही है। एक बार दारोगा जी की बांह मरोर चुकें हैं। लालटेन की रौशनी में अपना राजनीतिक भविष्य देखने वाले हमारे नेताजी आजकल तीर चला रहें है। हालांकि, लालटेन से मोह अभी भी बरकरार है। हों भी कैसे नही। कहतें हैं कि कमल को खिलने से रोकने के लिए तीर पर्याप्त नही है। जाहिर है, इसके लिए हाथ में लालटेन का होना लाजमी हो गया है।
आलम ये हैं कि तीर निशाने पर लगे या नही लगे। मंडली के लोग नेताजी का बखान करने में जुट जातें हैं। गदगद हुए नेताजी भी किसी को भी छारेने के मूड में नही है। चाहें वह मीडिया हो या ओपिनियन पोल। सच तो यही है कि टीबी पर लम्बी लम्बी वहस हो या अखबार में बड़ा इश्तेहार। गांव के चौपाल पर इसका कोई फर्क नही परता। शहर में बैठ कर खुद को राजनीति का जानकार होने का दंभ भरने वाले। क्या आपको पता है कि गांव का बेमुकुट गोपाल आपको बिका हुआ मान रहें हैं।

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